गीता समीक्षा कहना क्या है ?

कहना क्या है ? प्रत्येक ग्रंथ में प्रतिपादित विषय का अपना-अपना लक्ष्य होता है, जिसे सर्वप्रथम बताना होता है कि हमें कहना क्या है ? फिर उस लक्ष्य को प्राप्त कैसे किया जाए ? इस पर विचार होता है तत्पश्चात उसके साधनों पर विचार और उसका संग्रह करके लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है । इसी प्रकार गीता में भी अर्जुन की अत्यंत दयानीय स्थिति को देखकर कर भगवान अर्जुन के शोक निवारण के लिए क्लैब्य अर्थात नपुंसक, क्षुद्र विचारों वाला यहां तक अनार्य जैसे शब्दों का प्रयोग करके शोक से प्राप्त मूढ़ दशा से सावधान करते हैं, तत्पश्चात उपहास सा करते हुए प्रज्ञावादी अर्थात शुष्क बौद्धिस्ट कहकर अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं । भगवान ने आत्मा के स्वरूप का निर्धारण— जिससे संपूर्ण जगत व्याप्त है, अविनाशी, अव्यय, नित्य, कभी भी न जन्मने वाला, न मरने वाला अर्थात त्रिकाल में भी आत्मा का जन्म-मरण न हुआ था, न है एवं न होगा और हो सकता भी नहीं हैं क्य...